कभी तय करता था, अपनी मंजिले ,
पर अब जाने क्यों ठहर सा गया हू ।
मैं तो राहें दिखाता था , दुसरों को,
पर अब जाने क्यों खुद ही भटक गया हू।
मंजिल की तलाश में भटक रहा हूँ
इधर-उधर ....
न जाने ये वक्त की लहर ले जाएगी
किधर ....
पर अब जाने क्यों ठहर सा गया हू ।
मैं तो राहें दिखाता था , दुसरों को,
पर अब जाने क्यों खुद ही भटक गया हू।
मंजिल की तलाश में भटक रहा हूँ
इधर-उधर ....
न जाने ये वक्त की लहर ले जाएगी
किधर ....
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