सोचता हू वक्त से मांग कुछ लम्हें उधार ,
वापिस जि लू मस्ती के दिन वो चार ।
जहाँ जाने-अनजाने लोगों के बिच ,
कुछ बातें थी तेरी-मेरी .......
जो कभी लब कहने से चुक गए ,
तो कभी नयनों ने रह मूक कहे ।
नटखट सा ,वो मस्त बचपन था ,
अरे नहीं ,नहीं ,वो तो ........
अंगड़ाई लेता अल्हड़ सा यौवन था ।
जहाँ तेरे चेहरे की हंसी देख ,
मैं भूला करता था हर गम ।
तो कभी एक-दूजे की बातों पर ,
मुस्काने का होता था, हर मौसम ।
जहाँ रूठने -मानाने का ,
चक्र चलता था थम-थम ।
तो कभी खवाबो में उड़ने को,
आतूर रहता था अपना तन-मन ।
वापिस जि लू मस्ती के दिन वो चार ।
जहाँ जाने-अनजाने लोगों के बिच ,
कुछ बातें थी तेरी-मेरी .......
जो कभी लब कहने से चुक गए ,
तो कभी नयनों ने रह मूक कहे ।
नटखट सा ,वो मस्त बचपन था ,
अरे नहीं ,नहीं ,वो तो ........
अंगड़ाई लेता अल्हड़ सा यौवन था ।
जहाँ तेरे चेहरे की हंसी देख ,
मैं भूला करता था हर गम ।
तो कभी एक-दूजे की बातों पर ,
मुस्काने का होता था, हर मौसम ।
जहाँ रूठने -मानाने का ,
चक्र चलता था थम-थम ।
तो कभी खवाबो में उड़ने को,
आतूर रहता था अपना तन-मन ।