देहरादून और इसके आस-पास(केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,ऋषिकेश ) के इलाकों की जब भी कोई बात करता होगा तो उसका मन आनंदित हो उठता होगा क्यों की यहाँ जैसी भौगौलिक संरचना और मौसम कही और देखने को नहीं मिलता ।
पर इधर चन्द दिनों पहले की बात है की यहाँ बारिश की बुंदे शीतलता छोर अंगारे बरसाने लगे,नदियों ने लहरों में दहशत भर हर तरफ तबाही मचा दिया और पर्वतों ने आक्रोश में खूद को खंडित कर तितर-बितर कर लिया । जन को जीवन देने वाली गंगा जाने छिनने को आतूर हो गई और गाँव के गाँव अपने भीतर समाहित कर लिया ।
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हे गंगे ! रोष तूझे है क्यों हुआ
जो आज बन प्रचंड है बह रही ,
सिंचा जिसको अपने जल से
पाला लहरों की थपकी देकर ।
आज सर्वस्व उसका क्यूँ हर लिया ?
जिंदिगी की मन्नत मांगने
जो गए थे चारो धाम को ,
है लौट रहे सब शव बनके
अधूरे रह गए उनके अरमान रे ।
तेरे इस आतंक में
वसुधा-गीरी भी साथ निभा रहे ,
भूल कर मर्यादा अपनी ,
बेख़ौफ़ तबाही मचा रहे हैं ।
चारो तरफ क्रुदन है
सब बेबस है,लाचार है ,
बिलख रही है जिंदगियां
मचा हाहाकार है ।
जहाँ हर आँखों में अपनों से
मिलवा देने की गुहार है,
वहाँ झुठे आंकड़े बतलाती ,
ये कैसी निकम्मी सरकार है ।
इतने गावों -बस्ती को कर के शमशान ,
क्या अब भी मन तेरा नहीं भरा ?
या तेरी ममत्व पर ,
कोई शैतान का साया पड़ा ।
लोग सहन नहीं कर पायेंगे ,अब,
तेरे और थपेड़ो की मार रे ।
बहुत हुआ !
अब बस भी कर अत्याचार रे ।
----जय
पर इधर चन्द दिनों पहले की बात है की यहाँ बारिश की बुंदे शीतलता छोर अंगारे बरसाने लगे,नदियों ने लहरों में दहशत भर हर तरफ तबाही मचा दिया और पर्वतों ने आक्रोश में खूद को खंडित कर तितर-बितर कर लिया । जन को जीवन देने वाली गंगा जाने छिनने को आतूर हो गई और गाँव के गाँव अपने भीतर समाहित कर लिया ।
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हे गंगे ! रोष तूझे है क्यों हुआ
जो आज बन प्रचंड है बह रही ,
सिंचा जिसको अपने जल से
पाला लहरों की थपकी देकर ।
आज सर्वस्व उसका क्यूँ हर लिया ?
जिंदिगी की मन्नत मांगने
जो गए थे चारो धाम को ,
है लौट रहे सब शव बनके
अधूरे रह गए उनके अरमान रे ।
तेरे इस आतंक में
वसुधा-गीरी भी साथ निभा रहे ,
भूल कर मर्यादा अपनी ,
बेख़ौफ़ तबाही मचा रहे हैं ।
चारो तरफ क्रुदन है
सब बेबस है,लाचार है ,
बिलख रही है जिंदगियां
मचा हाहाकार है ।
जहाँ हर आँखों में अपनों से
मिलवा देने की गुहार है,
वहाँ झुठे आंकड़े बतलाती ,
ये कैसी निकम्मी सरकार है ।
इतने गावों -बस्ती को कर के शमशान ,
क्या अब भी मन तेरा नहीं भरा ?
या तेरी ममत्व पर ,
कोई शैतान का साया पड़ा ।
लोग सहन नहीं कर पायेंगे ,अब,
तेरे और थपेड़ो की मार रे ।
बहुत हुआ !
अब बस भी कर अत्याचार रे ।
----जय